Friday, November 6, 2009

प्रभाषजी को श्रद्धांजलि

प्रभाषजी और उनके खेल प्रेम पर दिग्गजों की राय

E-mailPrint

प्रभाष जोशीसचिन की आतिशी पारी के बावजूद भारत की हार के साथ हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरुष और क्रिकेट के जबर्दस्‍त रसिक प्रभाष जोशी इतने मायूस हुए कि दुनिया को ही अलविदा कह दिया। प्रभाष जी- जो क्रिकेट और टेनिस के दीवाने थे- अपने शब्दों के जरिए पाठकों और क्रिकेटप्रेमियों की चेतना को झकझोरते रहे, सचिन के 17 हजार रनों पर लिखने की तमन्‍ना को दिल में लिए ही जहां से कूच कर गए।

अफसोस, उनका सफर वहां खत्म हुआ, जहां असंभव को संभव बनाने देने वाले सचिन तेंदुलकर अपने आसाधारण खेल से दुनिया की नंबर एक क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया के मुंह से जीत को छीन कर भारत के हक में लाते-लाते रह गए। जहां सचिन सबसे ज्यादा रन बनाकर भी टीम को जीत नहीं दिला पाए, उसी तरह

अमित रायकवार

अमित रायकवार

प्रभाष जोशी भी सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड पर लिखने से पहले चले गए ...दरअसल, प्रभाष जी पेशेवर पत्रकार की तरह क्रिकेट पर कलम नहीं चलाते थे, बल्कि एक विकट क्रिकेटप्रेमी की तरह इस खेल और इसके खिलाडि़यों पर अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त करते थे। क्रिकेट के प्रति उनके प्रेम को लेकर खेल पत्रकार अमित रायकवार ने देश के कुछ बड़े क्रिकेटरों और खेल संपादको से खास बातचीत की। प्रस्‍तुत है संपादित अंश :


प्रभाष जी जैसा संपादक नहीं मिल सकता, जो खेल को बढ़ावा दे। शुरूआत से ही उन्होनें खेल को जनसत्‍ता का मजबूत पहलू बनाया। उनका एकमात्र लक्ष्य था कि हम खेलों के मामले में इंग्लिश अख़बारों से मुकाबला करें, किसी भी मायने में उनसे पीछे नहीं रहें। यही वजह थी जनसत्‍ता शुरूआती वर्षों में हमने रात 3:30 बजे 1986 में मेक्सिको में हुआ फुटबॉल वर्ल्ड कप टेलीविजन पर देखकर कवर किया। पहले पेज पर उस विश्‍वकप के हीरो और फुटबॉल के महानतम खिलाडि़यों में से एक माराडोना की तस्‍वीर थे। सुबह जब लोगों के हाथ में अखबार आया, तो सब हैरान थे कि सुबह साढे तीन बजे खत्म होने वाले मैच कैसे सबके सामने आ गया। वो चाहते थे कि खेलों में हम सबको पछाड़ें, इसलिए देर रात तक काम करके हमने ताजा से ताज़ा खबरे दीं। उनका क्रिकेट प्रेम जगजाहिर है। क्रिकेट के तो वे किताबी कीड़े थे। सन् पचास से लेकर सचिन तक, अब तक जितने खिलाड़ी हुए, वे कैसा खेलते थे, वो उनको मुंहजबानी रटा हुआ था। खास तौर पर वो सुनिल गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के बड़े प्रशंसक थे। सचिन की तो वे आलोचना भी नहीं सुन सकते थे। उनके राज में चाहे शतरंज हो या स्नूकर या फिर हो कुश्ती, फुटबॉल, सभी को अच्छी तरह कवर किया गया। और, खेल पर वे एक बड़ा पन्ना निकालते थे... वो पन्ने आज भी लोगो ने बड़े संभालकर रखे हुए हैं यादगार के तौर पर।

-सुरेश कौशिक, खेल संपादक, जनसत्‍ता


प्रभाष जी क्रिकेट के असली दीवाने थे। मुझे याद है जब 1977-79 में वे चंढीगढ़ में इंडियन एक्प्रेस के संपादक थे, तब इंडियन एक्‍सप्रेस के एक टेक्नीशियन के पास एक टेलीविजन हुआ करता था और वे कुछ जुगाड़ करके भारत-पाकिस्तान का मैच देखते थे। मैं भी उनके साथ मैच देखता था। वो पूरे नौ से पांच बजे तक एक छोटे से रूम में क्रिकेट देखते रहते थे। उसी दौरान उनसे मुलाकात हुई और क्रिकेट पर काफी डिस्‍कशन होने लगे। फिर उन्होनें मुझे इंडियन एक्प्रेस अख़बार में नौकरी का ऑफर दिया। अंग्रेजी और हिंन्दी दोनों भाषाओं पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी।

प्रभाष जी क्रिकेट के मौजूदा हालात को देखते हुए काफी दुखी रहते थे। आईपीएल और इतना पैसा खेल को बरबाद कर रहा है। वो बडे़ प्‍योरिस्ट और ट्रेडिशनल थे। उन्हें इस बात का हमेशा दुख रहता था कि आज का क्रिकेट वो पुराना वाला क्रिकेट नहीं रहा। वो आज भी क्रिकेट पर इतना ही अच्छा बोलते थे, जितना पच्चीस साल पहले। क्रिकेट के नॉलिज में उनका कोई मुकाबला नहीं था और वो क्रिकेट की टेक्निकल चीज़ों के बारे बहुंत जानते थे। युवावस्‍था में वे खुद भी क्रिकेट के बहुत अच्‍छे खिलाड़ी रहे थे और लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाजी करते थे। उन्हें अपने छोटे बेटे से काफी उम्मीदे थी कि वो आगे चलकर हिंदुस्तान के लिए खेलेगा। उनके छोटे बेटे हरियाणा से रणजी ट्रॉफी खेले थे।

प्रभाष जी में सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वो बहुत ईमानदार थे। जिन खेल पत्रकारों को क्रिकेट की नॉलिज होती थी, उन्हें वे बड़ा प्रोत्‍साहित करते थे। मुझे भी उन्होने काफी प्रोत्‍साहित किया। उनकी वजह से मेरे कॅरियर को सही दिशा मिली। अक्सर वे बड़े मैच मुझे कवर करने के लिए दिया करते थे, जिसकी वजह से मेरा कॅरियर अच्छा बन पाया। पॉलिटिक्स की समझ की वजह से उनकी क्रिकेट की पॉलिटिक्स की समझ काफी अच्छी थी। कपिल देव ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया और जब कपिल किसी विदेशी दौरे पर जाते थे, तो प्रभाष जी अपने पास कपिल को बुलाते थे और समझाते थे कि ‘डाउन टू अर्थ’ रहो, ग्लैमर की दुनिया आदमी को ख़राब भी कर सकती है। अगर क्रिकेट के प्रति आपकी कमिटमेंट रहेगी तो आप काफी आगे जाओगे। उन्होने काफी युवा खेल पत्रकारों को बढ़ावा दिया। जब 1982 में दिल्ली में एशियन गेम्स हुए, तब इंडियन एक्‍सप्रेस का सेंट्रल डेस्क बना और प्रभाष जी उसके हेड बने। उनके मार्गदर्शन में क्रिकेट अलावा बाकी खेलों को भी बढावा दिया गया। कई सीनियर क्रिकेटर उनकी काफी इज्जत करते थे। उनसे हमेशा सर, सर कहकर बात करते थे। उन्होंने क्रिकेट से जुड़े कई बड़े मुद्दों को उछाला और क्रिकेट को विस्‍तार से कवर किया, चाहे वो देश में हो या विदेश में।

-प्रदीप मैग्जीन, खेल सलाहाकार, हिंदुस्‍तान टाइम्‍स


काफी नेक इंसान थे प्रभाष जी। जब हम छोटे से थे, काफी प्रोत्‍साहित किया करते थे हमें। उन्होंने हमारे साथ प्रेस जैसा व्यवाहर नहीं किया। जब भी मुझे उनकी जरूरत होती थी, तो वो हमेशा मेरे साथ खड़े होते थे। उन्होने जिंदगी हमसे कहीं ज्यादा देखी थी... अपने अनुभव से वो हमेशा मुझे समझाते रहते थे। क्रिकेट के वे बहुत बड़े लेखक थे। बाद में वो दिल्ली आ गए, फिर उनसे थोड़ा संपर्क छूट गया, लेकिन जब भी मिलते थे, पुराने दिनों को याद करके उनमें खो जाया करते थे।

-कपिल देव, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान


वे बहुत ही क्वालीफाइ राइटर थे। जर्नलिज्‍म की दुनिया में बहुत आदरणीय शख्सियत थे। अपने निजी फायदे के लिए नहीं लिखते थे और उसूलों वाले व्यक्ति थे। मेरे क्रिकेट कॅरियर के दौरान उन्होंने मुझे काफी क्रिटिसाइज भी की, लेकिन मैंने हमेशा उनकी बातो को पॉजिटिव लिया।

-बिशन सिंह बेदी, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान


काफी स्पष्टवादी जर्नालिस्ट थे। फ्रैंक थे, ब्‍लंट थे और बहुत ही ईमानदारी से पत्रकारिता करते थे। वो एक ऑलराउंडर खिलाड़ी थे, जितनी जानकारी उनकी पॉलिटिक्स में थी, उतनी ही क्रिकेट में। एक बड़ा ऊंचा स्थान था उनका पत्रकारिता में। उनके ना होने से पत्रकारिता जगत की बड़ी क्षति हुई है। अक्सर जब उनसे क्रिकेट के बारे में बाते होती थीं, तो सुनकर आश्‍चर्य होता था कि उन्हें क्रिकेट की कितनी नॉलिज है।

-चेतन चौहान, पूर्व सलामी बल्लेबाज़, भारतीय क्रिकेट टीम


प्रभाष जी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। मेरे टीवी शो ‘मुकाबला’ के क्रिकेट शो के अलावा वे बाकी शो में भी हिस्सा लेते थे। गुरूवार को जब भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मैच चल रहा था, सचिन ने 175 रनों की यादगार पारी खेली। सचिन उनके सबसे मनपसंद खिलाड़ी थे, उन्‍हें देखते-देखते वो दुनिया से गए हैं।

जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, उसके बाद बीजेपी और संघ परिवार पर उन्होनें जितना लिखा और खुल कर लिखा, बहुत कम लोगो ने लिखा। और, आरएसएस पर उन्होंने काफी काम भी किया हुआ था और काफी पढ़ाई भी की हुई थी। मैं आज ही सुबह उन्हें याद कर रहा था उन्हें कि किस तरह उन्‍होंने संघ और आजादी की लड़ाई से संघ के जो लोग जुड़े हुए थे, उन पर काफी विस्तार से लिखा था। वीर सावरकर और संघ परिवार के बीच किस तरह के वैचारिक मतभेद थे, उसपर खुल कर लिखा। उन्हें पढ़ें, तो उनकी गहराइयों का पता चलता है।

ऐतिहासिक चीजों को आज से लाकर वो जोड़ देते थे। अभी हाल के दिनों में उन्‍होंने इस विषय पर खूब लिखा कि चुनावों के दौरान समाचार पत्रों की किस तरह की भूमिका रही। चुनाव के दिनों में पैसा लेकर खबरों को छापा गया। हाल के दिनों में उन्होनें जो काम किया, वो काफी सराहनीय है। एक तरह से पब्लिक इंटेलेक्‍चुअल की तरह उनकी भूमिका थी। वो चीज, जो लोगों के मन में आ रही है, उसे सही परिप्रेक्ष्‍य में रखना और अपनी बात कहना, ये उनकी खासियत थी।

उनकी एक खासियत और थी, उन्होंने जनसत्‍ता की जो टीम बनाई, वो जबर्दस्‍त थी। एक समय में जनसत्‍ता को चौथा थाना कहा जाता था। माना जाता था कि अगर पुलिस आपकी रिपोर्ट नहीं लिख रही है, तो आप जनसत्‍ता जाइए, वहां आपकी रिपोर्ट दर्ज हो जाएगी। आपको तुरंत फायदा होगा।

हिंदी पत्रकारिता को शिखर पर पहुंचाने वाले प्रभाष जी आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा पत्रकारिता में स्‍थापित किए गए मानदंड हमेशा नई पीढ़ी के पत्रकारों का मार्गदर्शन करते रहेंगे, प्रेरणा देते रहेंगे।

-दिबांग, मशहूर टीवी पत्रकार


Thursday, April 30, 2009

Cricket Reporter

खिलाड़ी नहीं बन पाया तो चलो खेल पत्रकार बन गया। अंकल कहते थे। (Late Anil Saari Arora, Film Citics) करियर की शुरूआत करनी है तो पहले प्रिंट से करना तभी खिलाड़ियों से अच्छा संबंध बनेगें। और लिखना भी सीख जाओगे। फिर टी.वी में जाना। मुझ पर तो टी.वी में काम करने की धुन सवार थी। एक चैनल में नौकरी मिल गई हाथ में माइक लेकर दौड़ भाग करने लगा। न दिन देखा ना रात पूरे जुनन के साथ काम करना शुरू कर दिया। छोटे चैनल में था तो बड़े चैनल के क्रिकेट रिपोर्टर मुझे गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। काम करता और सोचता मुझे भी कभी मौका मिलेगे। और में विदेश जाकर बड़े क्रिकेटर्स का इंटरव्यू करूंगा। भारत में तो खेल पत्रकारिता का मतलब क्रिकेट पत्रकारिता है। जो खेल रिपोर्टर क्रिकेट कवर करता है वो अपने आप को किसी सेलिब्रेटी से कम नहीं समझता। गोरी चमड़ी वाली महिला पत्रकार है तो फिर कहना ही क्या। उसकी चाल ढाल कपड़े पहनने का तरीका... सब बदल जाता है। अगर क्रिकेट की नॉलेज की बात करें तो इन्हें ये नहीं पता कि मिड विकेट किधर है... स्क्वायर लेग और फाइन लेग कहां है...लगभग हर बड़े चैनल का क्रिकेट रिपोर्टर अपनी मार्केटिंग करता नज़र आयेगा...कभी अपने किसी बड़े इंटरनेशनल खिलाड़ी से संबंध का हवाला देगा तो कभी...बीसीसीआई की दुहाई देगा...आमतौर पर रिपोर्टर अपने सर्किल में या फिर जूनियर्स के आगे कहते फिरेंगे कि निरजन शाह तो मुझे फोन करके ख़बर देता है। और सहवाग से जब मांगो तब इंटरव्यूह दे देगा। लेकिन जब ब्रेकिंग की बारी आयेगी...तो सुबह के अखबार में छपे एक एक लफ्ज को आप टीवी स्क्रीन पर देख लेंगे...बॉस का प्रेशर बढ़ेगा तो बाइट की याद आयेगी...और फिर बाइट लेने की होड़ में शामिल हो जायेंगे...सहारा फिर छोटे चैनल के रिपोर्टर्स का ही होगा...पूरी धमक के साथ ट्रांसफर लेने के लिये तैयार होंगे...पूछेगें भाई आज कुछ है तो नहीं। कुछ हो तो बता देना। नहीं तो डंप दे देना। छोटा चैनल का रिपोर्टर इसलिए इन्हें बता देता है एक दिन मुझे भी अपने पास बुला लेगा। मैं भी बड़े चैनल पर लाइव करता दिखुगां। सच्चाई ये है कि बड़े चैनल के ये बड़े रिपोर्टर्स नामी गिरामी क्रिकेटर्स के सामने गिड़गिडाते हैं। भाई एक इंटरव्यू देदे नहीं तो नौकरी चली जाएगी। मैं तेरे आगे हाथ पैर जोड़ता हूं। क्रिकेटर इंटरव्यूह देता है। फिर बाहर चौड़े होकर निकलते है। माहौल बनता है...कि भाई जनाब के तो बड़े लोगों से अच्छे सम्बंध हैं...शायद एक यही सबसे बड़ी वजह है कि एक टी.वी चैनल के बड़े से बड़े रिपोर्टर को छोटे से छोटा क्रिकेटर डांट देता है। लेकिन एक छोटे से छोटे अखबार को बड़े से बड़ा क्रिकेटर कुछ बोल नहीं पाता। टेलिवीजन में क्रिकेट को लेकर सबसे ज्यादा रस्साकशी विदेशी दौरों को लेकर होती है। हर टी.वी पत्रकार अपने साथी रिपोर्टर की लुटिया डुबोने में लगे रहते हैं...इनके लिये विदेशी दौरा... मतलब पैसा कमाने का ज़रिया..लम्बी चौड़ी गाड़ियां और शानदार फ्लैट दौरों की ही सौगात है...मैं जिस बडे़ चैनल में नौकरी कर रहा था। वहां के इंचार्ज ने मुझसे बोला जाओ गुंडप्पा विश्वनाथ के शाट्स कटालो । फिर इंचार्ज बोला जानते हो वो भारतीय टीम का सलामी बल्लेबाज था। मैने डर के मारे उससे कुछ नहीं कहा लेकिन सच तो ये कि विश्वनाथ तो मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज थे। सोचा इनके गले में घंटी कौन बांधे...फिर मैने अपने एक दोस्त सौरव से कहा... यार गुंडप्पा विश्वनाथ तो मिडिल आर्डर बल्लेबाज़ है । सौरव बोला सर छोड़ो शॉट्स काट देते हैं। कुछ मत बोलो वैसे भी ये चैनल के बड़े अधिकारी हैं। मेरे इस्तीफे के बाद सौरव कुछ उदास दिखने लगा। क्योंकि उसका भी बड़े खेल पत्रकारों से जी ऊब गया था...किसी तरह से बस टाइम काट रहा था...लेकिन एक दिन अचानक उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा...उसने मुझे फोन पर खुश खबरी दी... कि सर मेरा ट्रंसफर हो गया है। दूसरे रीजनल चैनल में जा रहा हूं। अब अपने हिसाब से काम करूंगा कोई बदतमीजी भी नहीं होगी। .... इससे पहले मैने सौरव को भी इतना खुश नहीं देखा था। अब मैं भी बड़े चैनस से निजात पाकर खुश हूं.... मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। (कालू काल्पनिक नाम) कालू मेरा अच्छा दोस्त हुआ करता था। रोज मुझसे बात करता भाई कुछ हो तो बता देना.... रात रात को फोन करना जैसे उसकी आदत में शुमार हो गया था। लेकिन जब मुझे उसके साथ काम करने का मौका मिला तो देखा वो पूरी तरह बदल गया है। मैने इस चैनल में सीनियर कोरसपोंटेड के तौर पर ज्वॉइन किया .... अचानक फर्क देखा कि कल तक जो दोस्त थे। वो अचानक दुश्मन हो गए... मैने हर बार कोशिश की ये लोग मेरे साथ अच्छा व्यवाहर करे लेकिन सारी कोशिश धरी की धरी रहे गई। बात इतनी बढ़ने लगी कि वो लोग मुझे पूरे न्यूज रूम में गाली और नौकरी से निकलवाने की धमकी देने लगे। मैने इसका विरोध किया। मेल लिख कर इनकी शिकायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर जाना लॉबिंग किसे कहते है। जो रिपोर्टर मुझ से सबसे ज्यादा बदतमीजी करता उसकी तो बात ही क्या स्क्रिप्ट चुराने में वो सबसे ज्याद माहिर था।किस स्क्रिप्ट को कहां से चुरा कर लिखनी है इसका तो वो मास्टर था। ये वो भी जानता था। नया स्पोर्ट्स इंचार्ज तो उससे सबसे ज्यादा डरता भी था। अब जनाब का ट्रांसफर साउथ इंडिया हो गया है। पूछने पर बताता है कि वो ब्यूरो चीफ है। लाइव और टी.वी में आने का इतना शौकीन जैसे भूखे को खाना। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।

Wednesday, April 29, 2009

Chote Brand mae Naukari Karna Gunaha ha ?

सालों से सुनता आ रहा था कि मिडिया अब मिशन नहीं रही बल्कि ये ख़ालिस प्रोफेशन बन गई है...चाह कर भी विश्वास करने का मन नहीं करता था...लेकिन शनिवार को एक पीआर कम्पनी ने मेरे इस भ्रम को तार -तार कर दिया...पत्रकारिता का मतलब अब तक मैं छोटे या बड़े ब्रैण्ड के साथ जुड़ना नहीं मानता था...लेकिन एक झटके में ही जैसे मैं गलत साबित हो गया...वाकया दिल्ली के फीरोजशाह कोटला में आयोजित इंडियन पैसा लीग (इंडियन प्रीमियर लीग नहीं)डेयरडेविल्स के एक फंक्शन का था...जिसमें इंडियन क्रिकेट टीम...माफ करें टीम इंडिया के धुरंधर सदस्य मौजूद थे...गंभीर, सहवाग और अमित मिश्रा...पत्रकारों का मजमा था...सभी जुटे थे अपने हीरो को सबसे पहले अपने टीवी दर्शकों के सामने पेश करने की कोशिश के साथ...लेकिन हैरान रह गये...जब परफेक्ट पीआर कम्पनी...ने अपने क्लाइंट कोको कोला के प्रोडक्ट को लांच कराने के बाद...कुछ सलेक्टिव चैनल्स या यूं कहें तथाकथित बड़े टीवी चैनलों को क्रिकेट स्टार्स का इन्टरव्यूह लेने की इजाज़त दी...और बाकी चैनल्स को नज़रअंदाज़ कर दिया...इतना ही नहीं जब इनसे अनुनय विनय किया गया...तो बदसलुकी पर उतर आये...और अपने स्कि्योरिटी गार्ड से हमें अंदर एंटर तक करने से रोक दिया गया...हम पर नज़र रखने का ऑर्डर दिया गया...उस पल एहसास हुआ कि इस पैसे वाली लीग में तो खिलाड़ियों के बयान के साथ साथ उनके चेहरे भी बेचे जा रहे हैं। अपनी अंतिम कोशिश के तहत (पत्रकार अन्त तक हार नहीं मानता) हमने दिल्ली डेयडेविल्स के मीडिया मैनेजर कृष्णा स्वामी से बात करनी चाही...तो उन्होंने हाथ खड़े कर लिये...कहा मेरे हाथ में कुछ भी नहीं...सब्र का बांध टूट चुका था...और हम यानी non selected channels के पत्रकारों ने पूरे इवेंट को बॉयकॉट करने का फैसला लिया। इस इवेंट मैनेजमैंट कम्पनी ने पत्रकारों को कुछ गिफ्ट दिए थे। जिसे ईटीवी, लाईव इंडिया, फोकस टी.वी, सीएनईबी, एमएच वन, टोटल टीवी के रिपोर्ट्स ने लौटा दिया। गिफ्ट कोका कोला कंपनी के मार्केटिंग डायरेक्टर मंसूर सिद्दिकी को लौटा दिया गया... इससे पहले मैंने कोका कोला के वाइस प्रैजिडेंट अक़ील मोहम्मद से Reqest की थी कि...हमें भी टीम इंडिया के सितारों से वन टू वन बातचीत की अनुमति दें...और हमारे साथ ऐसा सौतेला व्यवहार न करें...हमें साफ लफ्ज़ों में कहा गया..कि किसी को भी अंदर मिलने देने की इजाज़त नहीं है...जबकि हमारे सामने सेलेक्टिव चैनल्स की खुबसूरत महिला पत्रकारों को वहां भेजा जा रहा था। अब तक तो सुना था कि गोरी चमड़ी के आगे सब बेबस हो जाते है। लेकिन आज देख भी लिया। किस तरह पैसे और ग्लैमर की चकाचौंध में पत्रकारिता दम तोड़ रही है....